शनिवार, 24 सितंबर 2011

aate aadar nahi diyo

प्रकृति  कृषि व् नक्षत्रो के परस्पर सम बंधो के बारे में प्राचीन कल से विद्वानों ने अध्यन कर निष्कर्ष निकले है जो 
मो  खी ख रूप से यात्रा करते हुए सर्वत्र प्रचलिट हो गए है कुछ एक ऐसे निष् कर्शो वाली लोकोक्तियों का आनंद 
लीजिये [१] मृग नक्षत्र की बोवनी होने पर उत्तम फसल हो तीहै [२] आश्लेषा बाले व  मघा वाले  अर्थार्थ आश्लेषा 
नक्षत्र  में फसल के कई पोधे मुरझा जा ते है फिर मघा नक्षत्र में वो ही पोधे हरे भरे हो जाते है [३]पुख भरे कुख 
पुष्य नक्षत्र में इतन चारा हो जाट है की पशु ओं  के पेट भर जाते है [4]स्वाति नक्षत्र का वर्षा जल चातकका  एक मात्र 
पेय जल है वह सर्प के मुह में गिरने पर विष बनती है केले के पोधे में कपूर  बनती हैएवं सिप के मुह  में गिरने पर 
मोती बनती है  *स्वाति चना  होवेघन्हा  यदि स्वाति  नक्षत्र में वर्षा होती है तो चने की फसल  बढ़िया होगी 
[५]आद्राभर  खालिया खोदरा आद्रा नक्श त्र में इतनी वर्षा हो ती है किछोटे बड़े नाले पानी से भर जाते है 
[६]आते आदर नहीं दियो जाते दियो न हस्त तो दोनों पछ ता एंगे ऐ पाहु ना वो गृहस्थ
अर्थार्थ यदि आद्रा नक्षत्र के प्रारंभ  के दि नो में वर्श नहीं  होती है और हस्त नक्षत्र के अंतिम दि नो में वर्षा 
नहीं हो  ती है तो पावनाऔर गृहस्थ दो नो पछतायेगेक्यों कि फसल ख़राब हो गी श्लेष अर्थ आने वाले को 
आते समय स्वागत न ही किया और जाते समय  हाथ दे कर विदा नहीं कि या तो मेहमान और ग्रस्त दोनों 
को पछ ताना पड़ेगा ****हस्त शब्द से हाथीका बोध हो ता है इस नक्षत्र में कही कही वर्षा होती है कि न्तु जहाँ 
भी होती है वहाहनी ही हा नि करती है जिधर भी हाथी कीसुन्दफिर जाती है उधर           वर्षा होजाती है 
हस्त नक्षत्र में सर्पो का वि च रन बडी जाता है उ नके बी लो में पानी भर जाता है अतः वे इधर उधर घूमते
है और इन्ही दिनों में सर्प दंश की घटनाये बड़जाती है कहाजाता है किइस नक्षत्र में जब बिजली चमके उस 
समय कोई महिला गोबर से दीवाल पर अपने हाथो कि  छाप लगा दे तो सर्प दंश कीघ ट ना  ओ में कमी  
आजाती है //////इस ब्लाग पर लिखित साहित्यब्लोगेर ने इधर उधर से संकलिट किया है   इनकी सत्यता  
क प्रमाणि कर न उप लब्ध  नहीं है /

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